Review Of CuttPutlli: अक्षय कुमार की फिल्म कटपुतली की समीक्षा सुभाष के झा द्वारा की गई।

अक्षय कुमार की फिल्म कटपुतली की समीक्षा: या एक और निष्प्राण रीमेक है

Review Of CuttPutlli:

कटपुतली (डिज्नी+हॉटस्टार)

अक्षय कुमार [Akshay Kumar] और रकुल प्रीत सिंह [Rakul Preet Singh] अभिनीत फिल्म।

फिल्म का निर्देशन रंजीत तिवारी द्वारा किया गया है।

रेटिंग: **

हमें एक ऐसी किलर-थ्रिलर के बारे में और क्या ही कह सकते हैं जो अल्जाइमर के मजाक से शुरू होती है। वहां से कहानी और भी खराब और बदतर होने लगती है, क्योंकि हमें कसौली में हो रहे अपराध की यात्रा कराई जाती है जिसे केवल एक सख्त और बदमाश पुलिस वाला ही रोक सकता है। और वह पुलिस वाला कौन है, उसे जानने के लिए हमें किसी जांच-पड़ताल की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है।

अगर आपने तमिल सीरियल किलर वाली फिल्म ‘रातासन’ देखी है, तो आपको यह फिल्म कटपुतली लगभग उसी की तरह लगेगी। अक्षय कुमार, जिन्हें फिल्म का जरूरी हिस्सा छोड़कर एक अतिरिक्त गाना दिया जाता है, वह एक संघर्ष करने वाले फिल्म निर्माता की भूमिका निभाने के लिए बिल्कुल फिट नहीं बैठते हैं। फिल्म में अपराध के दृश्यों के साथ अक्षय की संलिप्तता अकथनीय है। क्योंकि फिल्म की स्क्रिप्ट एक सीरियल किलर के बारे में लिखी गई है, इसीलिए उन्हें इस काबिल दिखाया गया है कि वह उस सीरियल किलर को पकड़ सके जो स्कूल की लड़कियों को अपना निशाना बनाता है। इन अपराधों का मुख्य संदिग्ध एक गणित का शिक्षक है, जिसका काम अपने असहाय छात्रों को डराना और यौन उत्पीड़न करना है। उस शिक्षक का ना पकड़ा जाना और दोषी ना ठहराया जाना इस बात का सबूत देता है कि, हम एक अपराध राजधानी से निपट रहे हैं जहां पुलिस प्रतिभाशाली नहीं हैं।

गणित के उस शिक्षक को जमीन पर मरा हुआ पाया जाता है, और सीरियल किलर की खोज अभी भी जारी है। फिल्म की कहानी संवेदनशील और शोषक के बीच सफर करती है। हत्या के शिकार हुए कुछ लोगों की डेड बॉडी को उसी तरह प्रताड़ित किया गया हुआ दिखाया जाता है, जैसा कि असल जिंदगी में क्राइम सीरियल में देखा गया है। लेकिन फिल्म की कहानी कभी भी अपने गूढ़ इरादों से आगे नहीं बढ़ता है।

फिल्म का आखरी आधा घंटा विशेष रूप से समस्याग्रस्त है, क्योंकि अपराधी के अतीत को वर्तमान की व्याख्या करने के लिए जल्दबाजी में प्रकट किया जाता है। अपराध संप्रदाय का स्लैपडैश ट्रीटमेंट, कहानी की उन खामियों में से एक हो सकता था, जो एक मजबूत अनुकूलन बन सकता था। इसके बजाय यह केवल कुछ दृश्यों के साथ एक सर्वोपरि रीमेक है, जिसमें ऐसा लग रहा है कि वे गंभीर विचार करके इसे बना रहे हैं।

‘डिकी’ सीक्वेंस जहां अक्षय को एक कार के पीछे एक लड़की की बॉडी मिलती है, को काफी मेलोड्रामा के साथ पेश किया जाता है। फिल्म के क्लाइमेक्स का नर्व ब्रेकिंग होना बहुत जरूरी होता है। यह बस आप के दिमाग पर चढ़ जाता है। हत्यारे को उसकी जानकारी या सहमति के बिना पकड़ने के लिए एक युवा लड़की को चारे के रूप में इस्तेमाल करना, किसी गंदे अपराध को सुलझाने का अच्छा तरीका बिल्कुल भी नहीं है।

खैर, कोई भी इस हो-हम क्राइम थ्रिलर पर बुद्धिमान होने का आरोप नहीं लगा रहा है।

About The Author
सुभाष के झा

सुभाष के. झा पटना, बिहार से रिश्ता रखने वाले एक अनुभवी भारतीय फिल्म समीक्षक और पत्रकार हैं। वह वर्तमान में टीवी चैनलों जी न्यूज और न्यूज 18 इंडिया के अलावा प्रमुख दैनिक द टाइम्स ऑफ इंडिया, फ़र्स्टपोस्ट, डेक्कन क्रॉनिकल और डीएनए न्यूज़ के साथ फिल्म समीक्षक हैं।

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